Monday 18 December 2017

Arunima Sinha Biography in Hindi : अरुणिमा सिन्हा की पूरी कहानी

Posted by ajay

Arunima Sinha Biography in Hindi :- एक ऐसी महिला जिनको एक Train Accident ने शरिर से अपाहिज बना दिया और जब मौत और जिन्दगी के बिच लम्बे संघर्ष के बाद उनको  दोबारा जीवन मिला तो उन्होंने भगवान का धन्यवाद किया और कहा की अगर भगवान ने मुझे दुबारा जीवन दिया है तो  इसके पीछे जरुर कोई ख़ास मकसद होगा |

ये महिला और कोई नही अरुणिमा सिन्हा है आपमें से बहुत से लोगो ने उनका नाम सुना ही होगा ये माउन्ट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय विकलांग महिला हैं |

अरुणिमा जी ने  ये साबित कर दिया की शरिर से अपाहिज होने से कुछ नही होता आप दिमाग से अपाहिज नही होने चाहिए | चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरित हो यदि आप मानसिक रूप से मजबूत हैं तो पहाड़ो को चीरकर भी अपना रास्ता बना सकते हैं |


अरुणिमा सिन्हा की पूरी कहानी अँधेरे में चिराग का काम करती है तो चलिए उनके जीवन की संघर्षमय कहानी को पढकर अपने जीवन में फैले हुए निराशा रूपी अंधकार को प्रकाश रूपी ज्वाला से प्रज्वलित करलें |

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Arunima Sinha Biography in Hindi

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में उत्तरप्रदेश में हुआ था | वे एक रास्ट्रीय स्तर की वालीबाल खिलाडी रह चूँकि हैं | 11 अप्रैल 2011 को अरुणिमा जी CISF का exam देने के लिए लखनऊ से दिल्ली जा रही थी |

 वे पदमावती एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में सफर कर रही थी की बरेली के पास कुछ लुटेरों ने उनकी सोने की चैन और पर्स को खीचने और छिनने का प्रयास किया और जब अपराधी सफल नही हुए तो उन्होंने अरुणिमा जी को चलती ट्रैन से बाहर फेक दिया |

ट्रैन से बाहर फेकने के कारण उनके कमर और पेट में गहरी चोट आई | वे उठने की हालत में नही थी | पास वाले ट्रैक पर एक train उनकी तरफ आ रही थी उन्होंने ट्रैक से हटने की हर सम्भव कोशिश की परन्तु तब तक ट्रैन उनके बाएँ पैर के ऊपर से निकल चूँकि थी और उनका बायाँ पैर घुटने के निचे तक पूरी तरह से कट चूका था और दाएं पैर में से हड्डियाँ बाहर निकल आई थी जिसके बाद वे बेहोश हो गई |

वे पूरी रात उसी हालत में रेलवे track पर पड़ी रही अगले दिन जब सुबह हुई तो गाँव वाले उनको बरेली के अस्पताल में लेकर गए | वहां के डॉक्टरो ने उनकी हालत देखी और कहा की इनका पैर काटना पड़ेगा ताकि ये जीवित रह सकें परन्तु हमारे पास blood और Anesthesia नही है | दोस्तों anesthesia का इंजेक्शन सर्जरी के दौरान होने वाले दर्द को कम करने या शरिर को सुन करने के लिए लगाया जाता है |

अरुणिमा जी को दिखाई तो कुछ नही दे रहा था परन्तु उनको सुनाई जरुर दे रहा था और जब उन्होंने डॉक्टरो के मुंह से ये बात सुनी तो वे बोल पड़ी की डॉक्टर साहब जब मै ऐसी हालत में पूरी रात ट्रैक पर पड़ी रहकर दर्द को सहन करती रही तो पैर काटने के दौरान होने वाले दर्द को भी सहन कर लुंगी | अरुणिमा जी की हिम्मत को देखकर वहां को दो डॉक्टरो ने अपना एक -एक यूनिट खून दिया और बिना anesthesia के उनका पैर काट दिया |
अपनी एक speech में अरुणिमा जी कहती हैं की उस समय जो दर्द उनको हुआ था उसको वे आज भी महसूस करती हैं |

जब media के द्वारा लोगो को और सरकार को ये पता चला की दुर्घटना की शिकार महिला एक राष्ट्रीय स्तर की वालीबाल खिलाडी है तो उनको बरेली से लखनऊ के हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया और बाद में 18 अप्रैल 2011 को उनको AIIMS ( All India Institute of Medical Sciences )  में भर्ती करवाया गया जहाँ चार महीनों तक अरुणिमा जी का इलाज चला | पैर कटने की वजह से उनको कृत्रिम पैर लगाया गया तथा दुसरे पैर में रोड डाली गई जिसका सारा खर्चा दिल्ली की एक private कंपनी ने उठाया |

Mountaineer बनने की प्रेरणा

AIIMS में चल रहे इलाज के दौरान उन्होंने फिर से मिले इस जीवन में कुछ कर गुजरने का फैसला लिया | दिल और दिमाग को झकझोर देने वाली इस घटना के बाद भी उनके जीवन में निराशा नाम की कोई चीज नही थी |

उन्होंने फैसला किया की वे अब वालीबाल नही life का सबसे टफ गेम करेंगी इसके लिए उन्होंने माउंटेनियरिंग को चुना | अरुणिमा जी अपनी इस प्रेरणा का स्त्रोत भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह को मानती हैं जिन्होंने कैंसर को मात देकर दोबारा जीवन प्राप्त किया था |

 उन्होंने अपना लक्ष्य दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर तिरंगा फहराने को बनाया | इसके लिए उन्होंने उत्तरकाशी में स्थित नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोही का कोर्स किया और साथ ही भारत की पहली महिला पर्वतारोही " बछेंद्री पाल " से भी मदद मांगी |

Arunima Sinha जी की उपलब्धियां


कठिन संघर्ष और मुशिबतो के बावजूद आख़िरकार 21 मई 2013 को उन्होंने एवरेस्ट को फतह कर लिया और ऐसा करके अरुणिमा जी विश्व की पहली दिव्यांग महिला पर्वतारोही बन गई | माउंट एवरेस्ट को फतह करने का ये सफर 52 दिन तक चला था |

इतना ही नही माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने के बावजूद भी अरुणिमा जी रुकी नही उन्होंने दुनिया के सातों  महाद्वीपों की ऊँची चोटियों पर विजय प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है जिनमे से अधिकतर पर वे अपना परचम फहरा चूँकि हैं और उनकी ये यात्रा आगे भी जारी रहेगी |

दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर विजय हाशिल करके अरुणिमा जी ने ये शाबित कर दिया की हौसलों की उड़ान ,लगन और आत्मविश्वास के सामने बड़ी से बड़ी मुसिबत भी  घुटने टेक देती है |

अगर वे चाहती तो उस घटना के बाद आसानी से अपना जीवन यापन कर सकती थी क्योंकि उनको 2012 में ही CISF में हेड कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी | परन्तु अरुणिमा जी ने गुमनामी में जीवन यापन करने की बजाए एक नए रास्ते को अपनाया जिसमे हर कदम पर मुश्किलों का अम्बार था | लेकिन कुछ कर गुजरने की चाहत के कारण उनका नाम सुनहरे अक्षरों में देश के इतिहास में दर्ज हो गया जिसको सदियों सालों तक लोग याद रखेंगे |

पुरस्कार और सम्मान


आज उनको भारत की सरकार तथा दूसरी संस्थाएं अवार्ड और सम्मान से सुशोभित कर चुकी हैं, जिनमे पदम् श्री  प्रमुख है | इतना ही नही वे गरीबो और विकलांगो की सहायता के लिए " शहीद चंद्रशेखर आजाद विकलांग खेल अकादमी " के नाम से एक संस्था भी चलाती हैं |

तो दोस्तों मै आशा करता हूँ की आपको Arunima Sinha Biography in hindi  पसंद आई होगी तो Please इस success story को अपने दोस्तों और relatives के साथ share जरुर करें | और निचे comment में बताएं की अरुणिमा सिन्हा के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद आप उनकी जीवनी से क्या सीखे | धन्यवाद !

आप YouTube पर हिन्दी में Arunima Sinha का  भाषण भी सुन सकते हैं --

arunima sinha speech in hindi